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रविवार, 17 नवंबर 2013

बदमाश



वह बेजुबां  नहीं 
हिल रही थी उसकी जीभ
वह चुप है 
क्योंकि नहीं चाहता 
बोलना 

वह नहीं है गरीब 
ढकी है उसकी देह 
कपडे से, 
ये बात और-
नहीं है तहजीब
लपेटे है  लुंगी
फटी-मैली 
अपने तन पर
बजाय पहने के 
सलीके से ,

और भूखा .. 
बिलकुल ग़लत
खर रहा था घास
कल ही
पिछवाड़े मेरे बंगले के 
है शाकाहारी जो,

बेहद बदमाश .. 
कुंकियता रहा फिर भी
दरवाजे पर मेरे
पहरेदारी में लग गई
ठण्ड 
नाहक मेरे डौगी को। 



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